रोईड़ै रा लाल-लाल फूल

म्हांरी हथेली में!

कठै सूं आया रोईड़ै रा बीज

कुण लगायौ बांको जब्बर रूंख

किण हाथां व्ही इण री देख-संभाळ

आंधी में उड़तौ आयौ

पुरखां लगायौ रोईड़ै रौ रूंख

फेर दादोसा नै बाबोसा ने बेटा नै पोता नै

पड़पोता

करता रया इण री साज-संभाळ

आं सुरख फूलां रौ

रिछपाळ

अैक पूरौ कुणबौ!

अै फूल

म्हांरी कवितावां में अणथाग

सुरापण रौ

रंग भरै

कदै हीरांमण सुवटियै री ज्यूं

गोरकी, शोलीखोव ने दोन नंदी रै देस उड़ता-घिरता

अै जावै

अर लाल चूंच में

विसासां रा मोती-माणक भर ल्यावै!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण - जयपुर
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