(1)


इण गूंजतोड़ै छळावै में
तोड़ियां जा म्हारी देह
इतिहास-पुरुस!


(2)


पींडियां में बीजळियां
चबका पांसळियां में 
बांइंटा बूकियां में—
विद्रोह
रो जलम!


(3)


थारै आंधै केसां मांय
रमै म्हारी बोळी आंगळियां
नीं चायै,
म्हनै थारै गरमास रो हेम!


(4)


ऐ सोधा लिखार!
ऐ काळनेमी कळाकार!!
भरम मती आंमै

ओ सिरजणहार!


(5)


नीं आंथम्यौ काळो सूरज
सांप- म्हारा सहोदर!
फूंक दे जीवण!


(6)


आ सोनपंखी चिड़ी
उडै म्हारा खांधा दूखै
चींथै म्हनै गोधै री दड़ूक


(7)


पाणी री राग सुणों
बरफान काळजै री धड़कणां
पग-चाप डूंगरां री...


(8)


आपघात करग्यो
गंदी बस्ती रो एक अजाण हेताळू
डिकारै है नगर-दईत!


(9)


पीढियां,
म्हार मांय खदबदाय रयी है
पगां लमूटै है बोरवो-सईको
चीकणी घणी संस्कृति री
सीडियां


(10)


आव चालां
काम दिलाऊ दफ्तर री लैण में रड़भड़ा
परमेसर निस्काम!


(11)


कीं नीं हांडी में
आओ कागदी फसलां निरखां,


(12)


म्हारै पथरणै माथै
पसवाड़ो फोरियां सूती है थारी ओळ्यूं
तकियै हेटै–
भींचीजगी थारै कांगसियै री बत्तीसी


(13)


सरबधात री हेटै
स्यारो दियां बैठियो है एक टाबर


(14)


धोरा जागै
निंदरीजै तो
बाग अर बगीचा!


(15)


“दिन कद तांई ऊगसी
- बटाऊ पांखी?”
“… सूती रै सावण री डोकरी
आघकै पौर और”


(16)


आखर बीज
टुपक्या सिरजण-खेत में
बुद्धि रा बादळा ढूंढै
आकळ-बाकळ–
क्यूं–
-कांई?


(17)


रगत ले
पसीनो
ऐ आंसूं …… म्हारो जीवण
वाणी नीं- वाणी नीं–वाणी नीं
म्हारा लोकराज!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी-1 पत्रिका ,
  • सिरजक : ओंकार श्री ,
  • संपादक : तेजसिंह जोधा
जुड़्योड़ा विसै