जकी जमीं माथै

बै चुगै धातु रा टुकड़ा

कदी हुवता बठै-

बां रा खेत।

खेत में

बै भेळो करता ग्वार

काढता खळो

चरावता रेवड़

अर बाजता किरसाण।

बगत परवाण

बीं सागण भौम माथै

बै भंवता फिरै

भूखा-तिरसा

लोखंड-तांबो-पीतळ चुगता

मजूर बण’र

जिणरी धाड़ी सूं

मस्सां हुवै पेट ल्याळी।

कविता है

एक बावळै कवि री।

आंकड़ा बतावै-

सात सूं आठ फीसदी हुयगी

देस री विकास दर,

शेयर बजार रो सेंसेक्स

मना रैयो है दिवाळी!

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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