छंद स्यूं छोटी

ना फूटरी

ना अदभुत

पण जूण कविता है।

छोटी जूण

कदै कीड़ी

कदै बीरबहूटी

कदै साबत

कदै फूटी।

नान्है छंद री लय ज्यूं

पण काळजै री हूक लांबी

ऊंदरै रै बिल ज्यूं

जूण तेरे साथै

सोनचिड़ी रो घर!

तू नीं हुवै तो

काळै फणधर री बांबी।

कुण सोचै

जूण रेशम रो थान?

तो है मूंज रै वसन री कातर

जूण तन्नैं देखण खातर

जूण तेरे चांद होवण री पातर।

स्रोत
  • सिरजक : त्रिभुवन ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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