घर सूं निकळणो

फगत हुवै नीं है

कठै जावणो

अर

जाय’र आवणो।

फरक है

लुगायां जद घर सूं निकळे

तो निजरां में रैवै

बणै है कथावां

कीं आवळ-कावळ कथाण

रोजीना जुड़ै है

अेक नूंवी बात

लुगाइयां

इण गतागम में

निसार देवै

आखी जूण

कै मोड़ो हुवण पर

कीं तो देयसी पडूत्तर।

स्रोत
  • पोथी : पैल-दूज राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : सीमा भाटी ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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