एक

म्हैं बढूं उण सूं ज्यादा
खुदरो हाथ पूगे उणसूं डीगो
नहीं वेवण देवे
डीगो होवण सूं दूजां नै ई छाया
देवण लाग जावूं तो मंजूर कोनी
म्हारा मालिक नै।
खुद री दसा माथे रोवूं के हंसूं।
समझ नी आवै
पेड़ हूँ म्हैं एक बड़े बंगले रो।

चार

रोही रो पेड़ हूँ
घणो खुस और फळियो-फूलियो
पंखेरू घाले आळा
अर गावै गीत म्हारे माथे
भैंसियां आवै अर खाज मिटावे
आपरे डील री
पण लारले दिन मीट पड़गी
मिनख री
उण दिन सूं काँपू हूं
अर अरज करू हूं भगवान
के मिनख नै आगो राखजे
म्हैं रोही रो पेड़ हूं।
स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अर्जुनदान चारण ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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