ओळमा’ किणी नै नीं है
जद सूं
सगळा सवालां रा
लेवणां सरू कर दिया
पडूत्तर खुद सूं
लागै सो-कीं जाणै ही
पण सोधै नीं ही
म्हैं जोवै ही जको
लेवणां चावै ही जका उथळा
बै कठैई नीं मिल्या
अर उतरी जद ऊंडै तो
म्हारै मांय हा,
सवाल अब भी हुवै
पण अब मांय उतरूं
अर आवण लागै
म्हारै उणियारै पर मुळक
इण मुळक सार समझै
जकै नै सिलाम!