भारत मां री धजा फरूके

1

हेमालय रे हर्ष घणेरो, मुळक पुळक कर आफत टाळे।
भारत मां रे गंगाजल सूं, भाल तिलककर चरण पखाळे।
दादुर गावे कोयल बोले, मीठा मीठा मोर टहुके।
सांच अहिसा समता वाली, भारत मां री धजा फरूके।

2

छोळा मारे गहरो गाजे, हबोला समदर देवे है। 
लहरां साथे रास रचावे, बीती बड़ रीति कहवे है। 
राम-राम री पाज दिखाकर, याद करावण में कद चूके। 
सांच अहिसा समता वाली, भारत मां री धजा फरूके। 

3

काली रातां री बे बातां, हंस हस चांद सुवावण आवे। 
तांरा-वारां बण आई है, पूनू सजधज हुलस बधावे। 
धजा बीच में सबल सुधाकर, जड़-सिष्टि में जीवन फूंके। 
सांच अहिसा समतावाली, भारत मां री धजा फरूके।

4

पूरो तेज लियो दिन ऊगे, आजादी रो उछव बधावे।
सहसूं किरणा भल भळकाणी भाग भरी भारत पर छावे।
रतन नीपजे. चौड़े चमके, दुख दुर्गण दळदर दळ सूके।
सांच अहिसा समता वाली, भारत मां री धजा फरूके।

5

नदियां नीर निर्मला बहवे, सर-सरवर फूलां सूं छाया।
भवर चंवर ज्यूं तरवर डोले, महक उठी सारी बनराया।
ऊंचा उड उड पंछी किळके, सकल हंसे पण गायां कूके।
सांच अहिसा समता वाली, भारत मां री धजा फरूके।


स्रोत
  • पोथी : गुणवन्ती ,
  • सिरजक : कान्ह महर्षि
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