अेक

पंखो तो हूँ
पण
पांख कठै?
छात सूं लटक्यो
हुक सूं कस्यो
बस काट रैयो हूँ जूण

अदीठ्यर फ्रेम कस्यै
मिनख दाईं।

दोय

म्हैं
मनमौजी
पंखो
खुद री मस्ती में
चालू हूँ-
मनमाफक-मनचावो
फर्राटा भरूं हूँ
चावूं तो
हवळै चालूं
मन करै तो
कीं और कमती हवळै चालूं
जच चावै तो
फगत पांखड्यां ई हिलाऊं!

आ कैणगत सुण
पसवाड़ै वाळी
ट्यूबलाईट बोली-
अरे घनचक्कर!
घणी मत फैंक,
थोड़ो समझ
आपां रै चालणै
आपां रै बंद हुवणै रा
स्विच अर रेग्युलेटर 
किणी दूजै रै हाथ है!!


तीन

ऊँचै
चैफेर खुलै
आभै में
खुल्ली मस्ती करता
चक्कर काटता
दिसावां नापता-
पंखेरुवां नैं देख'र
म्हैं पंखो
घणो ताफड़ा तोड़ूं
देही-कैद
उमर कैदी दांई।

चार

म्हां सौरा-सुखी
पंखा देख्या है
दुख रा दरसाव
अेक नीं
तीन-तीन बहनां रा
पंखै सूं लटक'र
करतां आतमहत्यावां
बिखै रै कारण
कळंक रै कारण
दायजै रै कारण
म्हे बेचारा पंखा
अभागा पंखा।


पांच

बरबाद फसल
लुटायो
मैँगाई
भटकायो
करजो लीन्हो
पण-
चुकत नीं कर पायो,
फेर नोटिस दर नोटिस आया
गुँडागर्दी-मारपीट
बदनामी रो डर
छेकड़ हार'र
लीन्ही म्हारी पंखै री सरण-
लटकग्यो मरग्यो बो
ओह! जुरम किणी रो
अन्याय किणी रो
पण
भेागणो पड़्यो
पाप-पछतावो
म्हैं जिसै निरदोस
पंखै नैं।

छः

आज रो परेम
मौज-मस्ती री धारा
जी चावै तद तांई
खेलो
मन भर जावै तो
छोडो
परेम, परेम रै आगै
हाथ-पाँव जोड़
रौवै-बिलखै
परेम री सौगन दिराई
छेकड़ हार'र
म्हारो पंखै रो
आसरो
सूख गई
परेम री धारा
परेम बेचारा।


सात

म्हैं
ऊँचो चढ्यो
पंखो
माथै पर
घूम रैयो हूं
अर थूं
नीचै पड़ी
परायै बोझ दबी
कुरसी!
देख्या म्हारा ठाठ,
कुरसी मुळकी
मैणै री
तीखी धार चलाई
हाँ, हुक सूं कस्या
उलटा लटक्या
पंखा
साचै ई थारा ठाठ तो
जग सूं निराळा है-
उल्टी गंगा रा नजारा है।


आठ

म्हैं
पंखो
होटल रो,
म्हैं नीं जाणै
किसा-किसा
कित्ता-कित्ता
रूप
देख्या है
मिनख रा कै
भूलग्यो
मिनख री पिछाण तक
केई मिनख
लुकावण नैं
आप रा जुरम
आप रा पाप-
लटका देवै
लासां
म्हां पंखां माथै
जगत देखै बस
पंखै नैं
चालतां
पण नीं देखै
उण
सगती नैं
जिकी चलावै
सै पंखा।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनयोड़ी ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा
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