हरेक हांफळरासै पछै

वा देवै म्हनै

माथो टेकण सारू

आपरी सांवठी साथळ।

घड़ी’क लागै मींट।

जाग्यां पछै देखूं-

फेरूं पड्यौ हूं अखरोड़ै।

जोवं नुंवौ हांफळरासो

उडीकतो–

अबकै वा नीं आवै स्यात

पाक्यां पैली म्हारी नींद

छै’ली बिसांई।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मालचन्द तिवाड़ी ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम