साँझ की सलेट पे
चंदरमा की बत्ती सूँ
ज्यूँ माँडे
पहली किलास को बाळक
बिन्दी बणा’र एक
तारा माण्ड छै-खुद को नाम
मन्दर की झालर ज्यूँ बोले छै
गिनती-पाहिड़ा
म्हानै देख
तड़का ताँई तो
चांदनी पढ़ग्यो छो सारो गाँव।