खूटै बँध्या बैल डकरावै,
ऊण्यै खूण्यै हळ हकळावै
ऊँघ भरी छ खेत क।
खीजी दादी डाँट लगावै,
छोरा छोरी दाँत दिखावै,
माथो कूटै दादी दुखिया
भुक़्का मारै पेट क—ऊँध भरी छ खेत क।
फाटो कथल्यो टूटी खाट;
चरमरती मंगरा की लाट,
ताळ भरी मा छाँ की बास
आगणम मं को भर्यो उजास
दो दन पाछै पड़ी दराड़ाँ
बणता बणता सेत क—ऊँघ भरी छ खेत क।
टूटी दावण झूल्यो बाण,
ढूंड्यो बणगी झुकी कमाण,
नैण अँधेरों टूटी साँस,
पै’ री तरै डूबग्यो बाँस
पाड़ा की सब भैस जा बुजी
बाड़ै, बड़ा लठैते क—ऊँध भरी छ खेत क।
छोड़ कराड़ो मेंढ़क भाग्या
सड़कां प’ टर्राबा लाग्या
नागां क’ घर बासा होग्या
समझदार का तासा होग्या
राखी तागो बंधतो दीखै
अब बळबळती रेत क—ऊँध भरी छ खेत क।