काळै अंधियारै दीयै री लौ, आ ज्योतिपुंज जगमग करती
छायी हिड़दै में चंदो बण’र, अहंकार री आंधी हरती!
अणूतो अरड़ावै आंधो, लाख करै जतन सोई
काळी-पीळी रातां में, जाणै कोई राज जमावै है
सांय-सांय सरणाटा ले, टाबर ज्यूं भरमावै है
दीयै सूं टक्कर लेवण नै, भारी आतंक मचावै है
विकराळ रूप बेताळ बण, धरा सूं आभै तांई नाचौ
काळै अंधारै दीयै री लौ,आ ज्योतिपुंज जगमग करती!
है बण्यो बावळो अंधारो, छाया न नीं पिछाणै है
हर रात बदळती दिनूगै, मावस रै पाछै पूरणिमा
रे आ वा ज्योत जकी, आगै रो मारग दिखावै
रे आ वा मुळकती रेत जकी, भाग राग रळ जावै
आ नान्ही नूर बण नभ में, पून्यूं रो चांद उगावै
काळै अंधारै दीयै री लौ,आ ज्योतिपुंज जगमग करती!