वा लपर-लपर कर’र बूक सूं

तातो लोही पीवै

अंधार-घुप्प में बिजळी दांई

चमकै उणरी आंख्यां

मून मांय सरणाट बाजै

उणरी सांस

म्हैं अेकलो

डरूं धूजतो

कदी उणनैं तकावूं

अर कदी

हाथ में भेळी कर्योड़ी

कवितावां नैं।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै