(अेक)
सोचणो ओखो है
पण,
फेर ई थे
सोचगै देखो...
आपां
आदमी सूं
डांगर कियां बणग्या?
(दो)
बे धरम खातर
जान दे दी
पण आपां
धरम खातर
जान ले ली...
हिसाब
बराबर कर लियो!
(तीन)
घर
मोटा होग्या,
अर आदमी छोटा।
प्रकृति रो बिगाड़
कठै तांई पूगग्यो?
(चार)
म्हारै हक खातर
थे किताबां लिखी
अर बां लोगां
भाषण दिया!
म्हैं किताब पढली
अर भाषण ई सुण लिया
पण बात
बठै री बठैई रैयगी।
अब कोई
दूजो रास्तो है
तो बताओ?
म्हांनै किताबां
अर भाषणा सूं
ना भरमाओ!
(पांच)
मीरां
थे अेकर आ
प्रीत री रीत बदळद्यो...
म्हूं किरसण रै
होठां पर थांरै
नाम रो जाप
सुणनो चावूं!
(छह)
जद छोरी हंसै
तो बीनै लोग देखै
अर लोगां नै
छोरी देखै।
छोरी नै हंसती देख
लोग बातां करै
देखो यारो छोरी हंसै?
(सात)
म्है रोज
चूल्है री आग में
सुपणा बाळां...
आ आग कठै
भड़क ना जावै
टळै इत्तै टाळां।
(आठ)
म्हारा बाप दादा
रोटी रै जुगाड़ में
इयां ई जावता रैया...
पण
आभै रा अे देवता
भेख बदळ-बदळ’र
आवता रैया।
(नव)
कागलो
ऊंठ री टाकर पर
चूंच मारै।
बेशक
इण री उडीक सूं
कीं नीं होवै
पण ओ कागलो
क्रांति रा बीज
जरूर बोवै।