नाणा नाणा सब करैं,नाणा ना सब दास;

नाणा हारू आदमी,करतो र्‌यो अरदास।

करतो र्‌यो अरदास,वदे मूडी म्हारी बस;

जुवैं नाणियाँ खूब,भरी दूँ म्हूँ झोळा ठस।

हुणो 'विजय' नी वात,मले न्हें खावा दाणा;

भूके काड़ैं रात,कने जैने न्हें नाणा॥

स्रोत
  • सिरजक : विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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