नदी नै पार कर सकता हा

न्याव सूं

का तिर नै...

नदी पर पुळ बणा सकता हा

पण नीं बण सकै हो

नदी में घर!

नीं खोली जा सकै ही

नदी में दुकान!

नीं करी जा सकै ही

नदी में खेती...

क्यूंकै नदी री बाढ़ में

डूब सकता हा

घर, दुकान अर खेत!

पण नीं हुयो

किणी नै अचूम्भो

जद बजा़र री बाढ में

डूबगी नदी...

नदी में घर

नदी में खेत

नदी में दुकान!

अब नदी नै

पार करी जा सकै

बिना न्याव

बिना तिर्यां

बिना पुळ।

स्रोत
  • सिरजक : जगदीश गिरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी