कैवण नै तौ कैय दियौ
हिसाब देवणौ पड़सी हरेक सबद रौ
पण सबद खुद है म्हारै पाखती बेहिसाब
कियां करीज सकै है हिसाब
थूं जद सूंप्या हा म्हनै सबद
जद निपज्या हा म्हारै मांय सबद
लाध्या हा मारग बैवतां सबद
पोथ्यां बांचता अर बंतळ करता सबद
तद आ बात आगूंच तय कठै ही
हिसाब देवणौ पड़सी हरेक सबद रौ!
कोई तंगी ई कोनी अबार सबदां री
सबद खुद है म्हारै पाखती बेहिसाब
तद करूं क्यूं म्हैं हिसाब....
अट्टा-सट्टा करीज सकै सबदां रा
कठैई किणी बाड़ कोनी बांधी सबदां रै
लिया जाय सकै सबद उधार, बिना पूछियां किणरा....
इण निरवाळी दुनिया मझ-सागर में सबदां रै पूग्या
देखू बै अणमाप लडावै म्हनै अर म्हैं बांनै....
कविता होवै—
सबदारी अनोखी मुलाकात,
है आ आपसरी री बात
जिणनै अठै मांड दी, चेतै राखजै!
आगै सूं ना मांगजै इण पेटै कोई हिसाब
जे होवै तंगी थारै तौ बकारजै म्हांनै।