थांनै, आपरी बात नैं

मनावण रै खातर

जरूरत पड़ै भगवान री।

भगवान रो डर दिखावतां

थांरी बात

बिना सोच समझ’र

मान जावै मिनख।

थै मोटा-मोटा

सिंघासणां माथै भैठ’र

झूठ कैयो-

मुगती रो मारग है

राम रो नांव।

अर म्हैं

बिना सूझ-बूझ रै सागै

लाग्या लेवण राम रो नांव।

नाम लेवतां

बीतगी कई पीढियां।

पण होई कोनी

अजै मुगती।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : सतीश सम्यक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान
जुड़्योड़ा विसै