सतियां रै सतरी गाथावां, पतियां रै पत री घण बातां।

जतियां रै जंगी जूझारू, जीवण री जूनी अखियातां॥

संतां री वाणी सीख भरी, सूरां रा समर अनै साका।

वीरां वरदाई बड़भागण, मोटी मरजादण मरुभाषा॥

इणमें करसां रो करसण है, परकत से परसण इण मांहीं।

इणमें अणकूंत आकरसण है, देवां रा दरसण इण मांहीं॥

इण मांहीं मीठी मनवारां, तणती तलवार इण मांहीं।

इण मांहीं कळियां कचनारां, झांणर झणकारां इण मांहीं॥

बिण माथां दळ बाढणियां री, कीरत रा कमठाण अठै।

धरती, धन्या अर धर्म बचारण, घण घलिया घमसाण अठै॥

रावां नै ल्यावण सदराहां, कवियां री कलम निराळी है।

ईं राजस्थानी रैयत नै, हर बार हार सूं टाळी है।

पण राखण नै पातळ रो, (आ) पीथळ रै मूंढै बोली ही।

हिंदुआ सूरज री हुकारां, मुगलां री रग-रग डोली ही॥

वो फतेहसिंह जद फरज भूल, दिल्ली जावण हुंसियार हुयो।

सूरज रै साटै सोदै में, तारो लावण तैयार हुयो॥

जनगण रै मन से दरद देख, (आ) बारठ केहर री जीभ बणी।

चेतायो राणां नै चटकै इतिहास सरावै सीख घणी॥

राव-रंक रो भेद छोड़, अण न्याव साच री बात लिखी।

जूझार भोमियां पीरां नैं, इण ही पर री पीड़ दिखी॥

इण री ही ताकत पाण कवेसर, पद परमेसर पायो है।

जमपुर सूं ईसरदास जबर सांगो धर ओठो लायो है॥

लाखण नै लावण सुरपुर सूं, डोकर डाढाळी डगां भरी।

इण ही भाषा में मां करणी, तद धरमराज सूं बात करी॥

परकत रै रूड़ै रूपां नै, अण देव सरूपां पुजवायाI

पंथवारी, आसारुड़ियो कह, काटण छांगण सूं छुड़वाया॥

पेड़ा नै काट्यां पाप हुवै, बूढै बच्चां नै सिखलावै।

गोचर, बणियां अर ओरण हित, लोगां सूं धरती छुड़वावै॥

मां जायां अर घर आयां रो, एक बरोबर माण जठै।

जायां, भायां री के बातां गायां हित कटिया लोग अठै॥

गीता-रीतां रै ओळावै, अण प्रीत पनाळ बहायो है।

मीरा, करमां इण भाषा में, गिरधर नै गांव बुलायो है।

पण आज समै री सांकळ में, बेबस बंधियोड़ी बोलै है।

बेटां रै सामी हिवड़ै रा, भाव पुराणा खोलै है॥

दूजां सूं राखो हेत भलां, आज तलक मैं रोक्या है।

पण आज समै री मांग समझ, सगळां नै औचक रोक्या है॥

दास्यां रै रूपां रीझणियां, राण्यां रो साथ नहीं पावै।

पछतावे मसळ हाथ पछै सुख सेज अडोळी रह जावै॥

मिनडी रै डोळां डरपै बै, सिंघां री हाथळ किम सैवै।

जण - जण नै जांचण जावणियां, मालक नै माण कियां देवै॥

थे दाई रै कोडां रीझयोड़ा, (थे) माई ने छोडी छिटकाई।

नौ मास गरभ में राखण री, उण पीर सीर नै बिसराई॥

इतरी ही कहस्यूं आखिर में (थारै),आ बात समझ में कद आसी।

दाई तो दाई ही रहसी, माई रो रुतबो कद पासी॥

स्रोत
  • सिरजक : गजादान चारण 'शक्तिसुत' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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