टाबरपणै में

म्हे भैन- भाई

जे लड़ लेवता

तो म्हैं नीं लगावतो जेज

बाई रै थप्पड़ मारतां।

बाई बडी ही म्हां सूं

कैई बरस

अर जोरावर

पण नीं देवती

थप्पड़ रो पड़ूत्तर थप्पड़ सूं!

वा रोयनै

करती फरियाद

मां सूं...

मां म्हनैं डरावती-'‘अरे मरज्याणा!

भैन रै मार्यां

सिणियै में ऊग जावैला हाथ!’'

म्हैं उण बगत घणो डरपतो

बाई माथै नीं उठावतो हाथ

कैई दिन...

म्हैं सोचूं

मां कठै सूं सीखी

तजबीज

बाई नै मार सूं बचावण री!

क्यूं नीं सिखायो

बाई नै

पाछो थप्पड़ मारणो।

स्रोत
  • सिरजक : जगदीश गिरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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