मा। मैं रणखेतां जास्यूं

बाबोसा रो बखतर ल्याद्‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌यो

बो खूनी खाण्डो मगवाद्‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌यो

म्हारै घुड़लै जीन कसाद्‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌यो

राजपूती रा ठाठ सजाद्‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌यो

अब लडबा मरबा जास्यूं, मा।

खूनां रा समद बहास्यूं, मा।

मैं रणखेता जास्यूं।

बखतर यो बादळ बण ज्यासी

यो खाण्डो बीजळ चमकासी

पून-वेग म्हारो घुड़लो जासी

बस सरब नास कर आस्यूं, मा।

जीवण रो फळ जद पास्यूं, मा।

मैं रणखेता जास्यूं

बहनड़ अकनकवार उतारो

आरतड़ो रजवन्ती म्हारो

रोळी रौ टीको थारो

लोही मांगैला लाखां रो

टीकै री लाज रखास्यूं, मा।

बहनड़ रो प्यार चुकास्यूं, मा।

मैं रणखेतां जास्यूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : रावत सारस्वत ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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