म्हैं थनै बूझूं मावड़ी

क्यूं नीं थारी कूख में खटी,

इसो कांई जुलम कर्यो

थूं जामण सूं म्हंनै नटी।

कांई कर्यो म्हैं खोटो करम

जीवण रा रंग देखण नै,

धरती पर आवण सूं रोक्यो।

क्यूं बणाई थारी उजळ कूख नै,

कसाईबाड़ै रो कबाड़,

जलमता सूं पै'ली

क्यूं कटवाया म्हारै डील रा

डाळ-डाळ!

बता मावड़ी... म्हंनै बता

क्यूं नीं थारी कूख में खटी।

मा बोली आंख्यां में पीड़ तोलती

बेटी थूं क्यूं बेजां कुरळावै है

म्हैं थनै मारी अेक बार,

नीं तो मरणो पड़तो बार-बार

म्हैं थनै बचाई आज

गिरज-कागलां री निजरां सूं।

जलमता कांई उथळो देवती

ईं भूखी आंख्यां नै

म्हैं भोगी हूं पीड़

म्हारी आतमा जद नोचिजी

डील माथै खाया झरूटियां...

कांई उथळो देवती

कांई बतावती

कै थूं

किणसूं जाई ?

थारै सवाल रो म्हैं

कीं भी उथळो देवती

अेकर थनै

बिलमाय भी देती

पण थूं

समाज नै

कांई बतावती ?

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : नमामीशंकर आचार्य
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