सांची केवै संसदवाळा राजस्थानी भाषा कोनी।

1

सींधू रागों में संखनाद, छंदों में खड़गों रो पाणी।
गूंजण में केहर रो गरजण, रोबीली रजवट री राणी॥
खिमता खड़गां खड़कावण री, जूंझण जोधां रो जबर जोर।
मेटण मोतड़लो रा मटका, मरदां रै मूंछा री मरोड़॥
सुणतां जोहर जवाळा जागै, सुरगां रो माटी करै मोल।
बेमाता नैं हद बिलखावै, थळ री माटी रा वीर बोल॥

कीकर कैवै इणनै भाषा, आ जूंझारों रो जिन जोगी।
सांची कैवै संसदवाळा, राजस्थानी भाषा कोनी॥1॥

2

ईसर परमेसर रींझाया, हरिरस री बात न अण जाणी।
मेडतणी मीरां लियो मोल, गोपाळो गीता रो ग्यानी॥
कविचंद छंद रचिया कमाल, कंवळी करदीनी कुरबाणी।
अवनी री राखी आण अडिग, राजस्थानी बण रुद्राणी॥
रोटी खातर अमर्‌यो रोयो, बुझवा लागी सत री बाती।
रजपूती थिर राखण वाणी, आ गीता पीथल री पाती‌॥

कीकर केवै इणनै भाषा, आवेद पुरांणो री वोणी।
सांची केवै संसदवाळा, राजस्थानी भाषा कोनी॥2॥


स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर पुरोहित ‘श्रीपत’ ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै