म्हारै कनै नीं है असतीत रा आखर

म्हैं तो ऊभौ गाफल हुयोड़ो गौरवै

घोखूं कविता री बारखड़ी

तूं उछेरती रैईजै म्हारी भाव धेनुआं

टुळकावती रैईजे सबद बाछड़ा

कविता री गौर

म्हारै कनै नीं है कविता रो आंटो

म्हैं तो अबोट उडीकूं कै

तूं बोलसी म्हारै मूंढै

बतावसी लिखण रो आंटो

पोखसी म्हारी भूख

जियां पोखै है हांचळां हेरतै

बाखोटियै नैं बा मिरगी

सूंपूं हूं तनैं म्हारै कोठै रा भाव

तूं परोट लीजै

म्हारी बोछरड़ाई अर अचपळोपण

जियां परोटै है

कुचमादी टाबर नैं उणरी मां

मांडती रैईजै म्हारी चिराळी

निरांत कागद रै काळजै

थारै बिन कठै म्हनैं ठौड़

म्हारी मातभासा

तूं सै सूं वाल्ही

म्हारी मातभासा।

स्रोत
  • पोथी : मुळकै है कविता ,
  • सिरजक : प्रकाशदान चारण ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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