तेज भागती मोटर

बैलगाड़ी नै देख’र हांसी

अर बोली—

''बेगी चाल

अस्यां चालैगी

तो कद पूगैगी?

दिल्ली तो हाल घणी दूरी छै।”

गाड़ी, छाती गाढी कर बोली—

दिल्ली दूर होवै

तो होवै थसूं,

वा कस्यां

दूरी हो सकै छै म्हंसूँ।

री बहणा-

थारै दिल होवै तो तू जाणै,

कै दिल अर दिल्ली कांई छै।

अर सुण—

म्हूँ तो अस्यां चालूंगी

क्यूं कै गाँव सूं आई छूं नै।

अर—

देख म्हनै खांचता

म्हारा ये दो बाळद

अर यां की नाड़क्यां

थांकी पेट भराई का बोझ सूं

दबी तो छै,

पण नीची नं होई।

थांका पेट को परूसो,

लार्‌या छै ये कांधा पै

जनमां सूं।

क्यूं कै— यांकै छै ‘दिल’

घणो हेताळू

अर— घणो भोळो।

ये नं जाणै भर्राटा करबो

चीकणी सड़क्याँ पै सरपटबो,

पग-पग खदी ठहरबो

खदी मुड़'र न्ह झांकबो

ये जाणै छै,

काचा गारा, धूळा मैं चालबो

नंदी नाळा पार करबो

डूंगर टेका चढबो

धणी की लेरां जीबो

अर ऊंसू बी जादा

सहराँ का विकास मैं

मैहनत को सारो फळ घरबो।

ओराँ आछयो उढा’र

खुद फाट्यो पैहरबो।

अब तू बता- बेगा चालां तो कस्याँ

(दूरा होबा को डर छै)

यां सारा सगपण नं छोड’र

रीतो अेक स्वारथ

आगै खडबा को लेर।

स्रोत
  • पोथी : धरती का दो पग ,
  • सिरजक : गोविन्द हाँकला ,
  • प्रकाशक : क्षितिज प्रकाशन (सरस्वती कॉलोनी, कोटी) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै