इमरत की मांथणी सो छै मून

जे मून सूँ महताऊ होवै कोय बात

तो आज्यो म्हारै कनै ऊँ बगत

जीं बगत संधैती पे पौढ्यो होऊँ म्हूँ

अर बतिया’र दिखाज्यो म्हँ सूँ।

प्राणतत्त जद न्हँ र्ह ज्यावै डीळ में

ऊँ बगत बतिया सको तो बतियाजो म्हँ सूँ

संसार की सैं सूँ महताऊ भासा में

न्हँ तो छोड़ो सगळी दंद्याई

अर मान ल्यो के मून सूँ महताऊ कोय न्हँ थाँ की बाताँ।

मून तो मर्या मनख सूँ भी करै छै बंतळ

अर बंतळ करै छै

मसाण में लाकड़ी पे लेट्या

मर्या मनख को मून भी।

स्रोत
  • सिरजक : अतुल कनक ,
  • प्रकाशक : कवि रे हाथां चुणियोड़ी