म्हारूं मन मीडी मातै सढे

पछे बै हाथ जोड़े

नै ऊपर वाला थकी अरज करै

बै बोल खरच करै-

कै 'हे मालिक!

तूं म्हारी मीडी ने सलामत राखजे

केमकै म्हारू घर म्हारी सृस्टि है

ने म्हारी मीडी म्हारू अंगास है...

अेटले म्हारी अेक'ज अरदास है

कै म्हारी मीडी अगर न्ही टूटे

म्हारो तारो जो न्ही रूठे

चंदा नो परकास भी न्ही खूटे

ने हूरज हवारे टेम सर उठे

तँ म्हूं ने म्हारी कलम

आणा अंगास नो भरम

नरम करी सकंगा

अर मीडी नी महिमा

इटली गरम करी सकंगा

कै आज नो आदमी

अंगास नी आन

अर बुलंदी नी भान भूली जाअेगा

अेने आणा जीवन नो प्रण मली जाअेगा

तरत हिवड़ा नो होंठ खुली जाअेगा!

ने पोते मन थकी बोली जाेगा-

कै ज्या हदी आपणी पुग

क्यारे भी न्ही थाई सके

ज्या तक मानवी

जराए न्ही जाई सके

म्हारा भाई तमे अेने मातै नके मरो

वायरा में वाते नके करो

ऊँसी उड़ान नके भरो!

बस अेक काम करो

नेक काम करो

आपणी मीडी मातै सढो

ने आँख मंय अंगास नी तसवीर जड़ो

पछे अंधारा थकी लड़ो

तँ जरूर अेक दाड़ो...

तमारू नाम अंगास ने अड़ेगा

ने तमने त्यारे खबर पड़ेगा

के अंगास अनन्त वेगरू

अर मीडी घणी-घणी नीडी

अेटले अंगास थकी मोगी है मीडी

खरेखर मोगी है मीडी

हांसाहास मोगी है मीडी।

स्रोत
  • सिरजक : छत्रपाल शिवाजी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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