म्हारी आस

मिरग री तिस

चौफेर दिसै

पाणी पाणी

तो नी पी सकै

म्हारी आस

दौपदी रो चीर

बधती जावै

म्हारी आस

अकास गंगा

असीम गंगा

असीम अनंत

दीखण में रंग-बिरंगी

भीतर सूं

अंधार घुप्प।

स्रोत
  • पोथी : भींत भरोसै री ,
  • सिरजक : सत्येंद्र चारण ,
  • प्रकाशक : वेरा प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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