अणगिण कविया जिणरी कीरत,

रचनावां मांय बखानी है।

जिणरो इतिहास अनूठो है,

गाथावां घणी पुराणी हैं।

जीं रा सबदां री बणघट अर,

ताकत नीं किण सूं छानी है।

सुणता ही नाचे मारूणी,

गरमावे जोश जवानी है।

जीं सूं पहचाणे सब म्हाने,

आपां री खास निसाणी है।

वां दस करोड़ कण्ठां रमती,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

भाषा री बेट्यां बोल्यां हैं,

ज्यांरा न्यारा घर-बार हुवे।

पण मायड़ सूं अळगो कोनी,

व्यांरो कोई संसार हुवे।

धीवड़ मे जामण झळक दिखे,

जितरा भी हार-बुवार हुवे।

बेट्यां री हालण-चालण म,

मायड़ थरप्या सँस्कार हुवे।

खुद रा खूंटा नै बिसराबो,

धोळा धूळ पड़ाणी है।।

मन सूं मीठी मावड़ अपणी,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

जिण जितरी ज्यादा बोल्यां,

वा उतरी ही समरिध भाषा।

घण बोल्यां सूं घण सबद मिले,

सबदां सूं प्रगटे अभिलाषा।

बोल्यां सबदां री ताकत सूं,

भाषा होवे खासमखासा।

जो भी कहवे उल्टी बातां,

व्यांरा मनड़ा है फांसां।

जगती जींरा सबदकोश री,

महता सगळा मानी है।।

सांसां री सरगम सांच्या ही,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

थां मत उळझो इण चक्कर म,

कुणसी बोली है रजथानी।

घर ग्वाड़ी गीतां रीतां री,

हर बोली है राजस्थानी।

मेवाड़ी हाड़ौती वागड़,

ढूंढाड़ी है जानी-मानी।

शेखावाटी अर मारवाड़,

भाषा री पत नै पहचाणी।

सब बोल्यां रे अंतस मांहे,

बहवे रसधार समानी है।।

आडावळ धोरां बसयोड़ी,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

सारी रातां श्रोता सुणता,

ज्यांसूं नी कदै अघावा हा।

सैनाणी मांडी मेघराज,

मोहम्मद सिद्दीक रिजावा हा।

लाखीणा घोड़ा रा सपूत,

त्रिलोक गजानन गावा हा।

मोहन मंडेला गौरी ने,

डोलर हींदे हिंदवावा हा।

सेठ्याजी लिख धरती धोरां,

जिणरी पत साख बखानी है।

सबदां री सौरम सूं महके,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

सीखड़ली दीनी कानदान,

माधव रजथान गुंजावे है।

राजावत री चढ़ती बैलड़,

ढूंढाड़ भँवर गमकावे है।

रघुराज मुकुट अणु भागीरथ,

गजबण दुर्गा ने भावे है।

बाबू विष्णू दाधीच देव,

बादल मुरलीधर गावे है।

कैलाश मंडेला रा गीतां म,

जुग री लिखी कहानी है।।

अणगिण मीठा कवियां रमती,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

चंदरबरदाई सूं बहवे,

भाषा साहित री सीरां।

जण-जण गावे ज्यांरी वाण्यां,

वे रामचरण,दादू मीरां।

ढोला मारू रा दूहा म,

गाथा तिरती कंठां तीरां।

बगड़ावत तेजा रामपीर,

ये लोक रच्या आखर वीरां।

वा मिसण सुरजमल री सतसइ,

लोगां री चढ़ी जबानी है।।

शगती भगती रस रमियोड़ी,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

गूंजे अलगोजा सुर ज्यांमें,

नड मोरचंग नफरी बाजे।

भोपां री फड़ परवान चढ़े।

रावणहत्ता रे सुर साजे।

मनड़े मूमल अर मांड रमे,

आवे हिचकी गोर्यां लाजे।

सुण फाग गोरबँध शंकरियो,

लंगां री धुन जगती नाचे।

गाळ्यां भी गावे गीतां म,

या ताकत कुणसूं छानी है।।

सुर सबदां रो सगपण करती,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

मायड़ हुलराती पालणिए,

जद बाळक सूं बतवार करे।

छोटा लख बड़ा बडेरा नै,

आदर देवे सतकार करे।

तनमन होवे पीड़ घणी,

जद काळजियो चितकार करे।

रात्यूं सेजां पर ढोलो जद,

मारूणी सूं मनवार करे।

उण बगतां बोल्या सबदां म,

मनड़े री साँँची वाणी है।।

थां पहचाणो वा अंतस री,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

सगळा मायड़ रो हित साधां,

आदर देवां सिणगार करां।

है साख आपणी भाषा सूं,

सुर सबदां सूं झणकार करां।

थां आओ आज हरावळ म,

लो बिगुल बजा, टणकार करां।

अपमान करे जो मायड़ रो,

तो बासक ज्यूं फणकार करां।

म्ह साँचा कहूं, थां दरद सुणो,

अब थांने साख बचाणी है।।

बेटां रो मूंडो ओळखती,

म्हां भाषा राजस्थानी है।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कैलाश मंडेला
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