जोयां हाथ नीं आवै कविता
अणचींतै सूझै...
जद करणी चावूं बतळावण
तौ कोनी सूझै कोई सावळ सवाल
सवाल औ पण है कै कोई कवि कविता सूं कांई करै सवाल
कांई कविता सूं ओळख पछै ई जरूरी होवै कोई सवाल
सवाल है कै कित्ती बजी है
सवाल है कै बारै जावौ पाछा कणा आसौ
सवाल है कै अबार जीमसौ का पछै
सवाल है कै चाय बणा दूं पीसौ कांई
सवाल है कै नींद आवै बत्ती कद बंद करसौ
सवाल है कै आं पोथ्यां में सारै दिन कांई सोधौ
सवाल है कै कोई पईसा-टक्कां रौं काम क्यूं नीं करौ...
सवाल... सवाल... सवाल। सवाल केई भळै ई है सवाल।
पण कोरा सवालां सूं कांई संधै
कांई सगळा सवाल रळा'र कोई कविता सांध दूं
पण कांई करूं,
अबार-अबार ई जलमियौ है जिकौ सवाल थारै मगज में
इणी खातर तौ सगळा सूं पैली कैयौ नीं —
जोयां हाथ नीं आवै कविता
अणचींतै सूझै...
कविता आ है कै म्हैं उडीकूं कविता
जे थांनै सूझै कविता
तौ उणनै खबर जरूर करजौ कै म्हैं उडीकूं।