व्हैला रै व्हैला सगळा थोग

पण म्हैं नीं!

चीजां रै चीजां जीवण-जोग

पण म्हैं नीं!

मरियां मारैला सोग

के म्हैं नीं!

जीवै रै जीवै म्हारा लोग

अर म्हैं नीं!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थळी – राजस्थानी मांय लोक चेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : तेजसिंह जोधा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि