कोई पाछा कर दे,

म्हारा बाळपणा का ख्याल।

द्याड़ी का चूंतरा की लीमड़ी का हींदळा,

चक-चक मूंग्या चीला पोता बांदरवाळां बीजणा।

कांवळी की छांवळी को लेरां-लेरां भागबो,

संझ्या ढळतां सोबो, पहरां का तड़का को जागबो।

दादा की दलकारी अर भावज की मीठी गाळ।

माथै आतो पणघट पगल्यां पींदै दबतो माळ।

कोई पाछा कर दे,

म्हारा बाळपणा का ख्याल।

आमल्यां की झामल्यां का काचा-पाका खोर्‌या

झक्कर सूं पाक्या डगळ्या जो झोळ्यां भर-भर सोर्‌या

मोतीदह मैं सांपड़वा सूं भैंचक को डर लागबो,

डाफा लेती गुल्ली कै पाछै राड़ी मैं भागबो।

चांदणी की भरी तळाई डूंगर बांधी पाळ,

माथा पै ऊंदो लटक्यो तारां सूं भरियो थाळ।

कोई पाछा कर दे,

म्हारा बाळपणा का ख्याल।

आंगणां मैं रेवड़्यां सूं आंबा ला’र उगावणो,

चींट्यां नै चुग्गो, चिड़कल नैं घूघर जा’र चुगावणो।

मावस की रातां मैं दखणी लीमड़ा की पाती,

पून्यू मैं भाभू रोताणी सोळा सांवत गाती।

झूठा भैरूंजी भड़काता रतन्या-छगन्या ग्वाळ।

पंछीड़ा गाता बूंळ्या, संकर्‌या टेरती जाळ।

कोई पाछा करदे

म्हारा बाळपणा का ख्याल।

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै