सूरज चांद री
गुड़कती दड़्यां सूं
नीं रीझूंला म्हैं!
मायनो चावूं म्हैं
कै शेषनाग रै फण माथै है
का किणी बळद रै सींगां माथै
आ धरती..!
मायनो चावूं म्हैं
कै म्हारी जड़ां जमीं मांय है
का आभै मांय किणी डोर सूं
बंध्योड़ो हूं म्हैं!
मायनो चावूं म्हैं
कै किणी रिंधरोही भटकूंला
का पंख लगा उडूंला आभै मांय
किणी बीजै री आंख सूं....
मायनो चावूं म्हैं
कै किणी पुटियै काकै री टांगां माथै है
का किणी किसन री आंगळी माथै-
ओ आभो।
बिरखा-बादळी का इंदर-धनख सूं
नीं रीझूंला म्हैं
मायनो चावूं म्हैं..।