बिरम-तणी माया री सिस्टी, समझ न कोई पावै!
जाणै जिका मौन मन साधै, दर नीं बात बतावै!
चींत-मनन सूं दिव्य-तत्व रो,
उजळ-उजाळो दरसै!
रळै आतमा पार-बिरम में,
प्रीत भाव मन हरसै!
जोखै जिका पजोखै हिरदै, बां घट बिरम समावै!
बिरम-तणी माया री सिस्टी, समझ न कोई पावै!
सावळ संवळै मारगियै सूं,
जिका लगोलग चालै!
ठेठ ठांयचै ठीढ़ै पूगै,
रैय कदै नी ठालै!
तपै-तपावै सत री धूणी, हिरदै हेत उमावै!
बिरम-तणी माया री सिस्टी, समझ न कोई पावै!
देवातण पूजा रा मिंदर,
घट रै मांय बिराजै!
शंख-बंसरी झींझ-पखावज
मांय लगोलग बाजै!
ध्यान-चींत रै मांय उणां री पड़गूंजां गरणावै!
बिरम-तणी माया री सिस्टी, समझ न कोई पावै!
जिका साधना सत री साधै
बै नर है बड़भागी!
पार-बिरम री किरपा साथै
जोत उजळती जागी!
‘सत्य’ ईश-गुरुवर रै सरणै, मन में मौज मनावै!
बिरम-तणी माया री सिस्टी, समझ न कोई पावै!