माटी सूं जोड़तौ

सांचै नेह की पिछाण करांवतो

कई जलमां कांकण डौल्डां को

लेख बखाणतौ,

प्रीत पगे'ड़ पाकै अ'र अणटूट बंधनां सूं

फेरां फिरायौ, गोळायौ

शाश्वत सतमंत्रां सूं खेयौ

परंपरावां को ओटायौ

बडेरां चाकां चढाय

सुथरौ सांवठौ जोड़पौ

सौंधी माटी की मैकार लियां

सात बचनां मं

सात जलमां की सौगंध सूं

सींच्यौ,

करसां को मान बधांवतौ,

धान भरियो

समूळी स्रिष्टी समायां

म्हारी पूजण की थाळी मं

सागी समै आय बिराजै!

कातक चौथ मावड़ी

की गोदी बैठ्यौ!

रोळी-मौळी गुड़ धान अ'र

प्रेम की सौरम सूं

गाढौ घड़ियौ!

बणै सायगी सौळा सिणगार को!

तापस बळ को,

त्याग अ'र समर्पण को,

दरसावै चांद आस उजास को

बधावै बेलड़ी आखै जगत कड़ूमै की!

आधार बणावै

सुहागण भाग न...

देवै सीख खुशीयाळी सागै

उच्छाव की!

जीवण की परिभाषांवां अरथांवतौ

जगावै अलख परकत की

शाश्वतता अ'र संरखण की

म्हारै मनड़ै भरियै

आणद कुंकुम को

चिरजेड़ौ, रंग लगांवतौ

मनभांवतौ

माटी को करवौ!

स्रोत
  • सिरजक : विमला महरिया 'मौज' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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