पीवण नै ना सही

देखण नै तो है...

धोरां मांय देखूं

अळघी भांव

पाणी पाणी..!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी