जद स्यूं घरां गैस आई।

खुस होगी घरहाळी लुगाई॥

मुळकती रैवै हर पळ

खिलखिलावतां रैवै है टाबर।

पण,

उदास है माटी रो चूलो।

गोबर स्यूं लीप संवारती दादी

आप री खुरदरी हथेळियां स्यूं

खीरां पर सिकता बाजरै रा सोगरा

भोभर मांय गरमाती बाटी।

हांडी रै बधार री महक स्यूं

आज्यांवतो मूंडै में पाणी

अब तो रसोई री ओळ्यूं ही बची है

धूळ भरीजेड़ो चूलो

लुकाय राखी है

यादां री पोटळी

ठंडी राख में।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (जनवरी 2021) ,
  • सिरजक : भानसिंह शेखावत ‘मरूधर’ ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकानेर)
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