कटता देख’र
रूखां नै
झरता देख’र उण रा
हरियल पानड़ा
अेक कीड़ो जुळबुळावै
म्हारै माथै मांय
समझाऊं किण नै अर कियां?
कोई
चा’वै ई नीं समझणो
लागै इयां कै
लुट रैयी म्हारी अेक-अेक सांस
जाणो आप म्हनै?
नईं?
म्हें ई बताद्यूं—
म्हैं हूँ मानखो आखो!