अै सड़कां,

दिनोदिन

सांकड़ी नै ओछी

व्हैती जा री है

क्यूं

कै दिनोदिन

पाबूजी री पड़ दाईं

नै

मतीरै बेल दाईं

मानखै री बेल

दिन दूणी नै रात चौगुणी

बिना पूरण विराम रै

बधती’ज

जा रैयी है।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : श्रीमाली श्रीवल्लभ घोष ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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