म्हारा पीहरिया को खेल,

म्हारी साथणियां को खेल,

भर भर तारां का जनेती,

चाली बादळ्यां की रेल।

बाबुल बणग्या रै परदेसी,

बीरा बैठ्या पैली पोळ,

सासू की पोळां बाजैगा,

मायड़ का दीना रमझोळ।

प्यारो बेवड़ा भोजायां,

सोता सूरज को सन्नाटो,

गाती गोधूळी मैं गायां।

सारा सावण की हरियाली,

पीगी महंदी नागरबेल॥

मूळ्या चूड़ा बण्या पचेटा,

लाडी फूत्यां का गुण गाती,

छुप-छुप सेठां की घुड़साळां,

खेली दे-दे ल्यो-ल्यो पाती।

रोट्यां मोत्यां सी मक्का की,

चटणी तारां का बाड़ा मैं

बांधी बादळ्यां की टाटी।

घटती पाणी की परछांई

बधती मन्दरिया की केळ॥

डगळ्या सांगर्‌यां को खाबो,

चामळ म्हाराणी को न्हाबो,

चांदणियां मैं साथणियां की

टोळ्यां मंडबो हंसबो गाबो।

सावण मैं बागां का झूला,

सोळा भादो बांधी राखी,

गळतै स्याळै धूणी काकी।

बोलो रामचन्द्र की जै हो,

काकी चरड़ै आवै सैल॥

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै