बरस चवदा
थकां धणी
भुगत्यौ विजोग
रात अर दिन
भोगी पीड़ पळ-पळ
हुवता थकां
राजा री पटराणी
ठाह नीं कुणसै अपराध
मिळ्यौ औ डंड
भरत री घरनार
मांडवी नैं !
जिणरौ पड़ूत्तर सोधै है
लुगाई जात
भोगती कीं न कीं
नूंवा-नूंवा डंड
अजेस लग।