मन

उड़ै

चौफेर आठूं पौर

किण विध

काबू करूं

पण

निकळ जावै

फेरूं

हाथां सूं

टिकै नीं

अेकण ठौड़

रमै नीं कठैई

जतन करूं

काबू करण रौ

पण नीं हुवै सफल

जतन

अर भटकतौ रैवै

मन।

स्रोत
  • सिरजक : वाजिद हसन काजी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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