अेक अमूरत सपनौ अंवेरियां खुद री कूंख में

अबखै हींडोळां पोखती रैवै थूं मन री आस मां!

बगत आयां कूंख सूं अळगौ कर'नै

सूंप लेवै कूंत नींद अर पाछी पांघरती मुळक में

सोध लेवै कूंत फेरूं खुद री जीवारी रौ अरथ

पण जद हळकी-सी हिचकी में अटक जावै सांस

उण जांमण रौ जोखम

कोई किण विध जांण सकै?

थारी ओळूं में बिगसती म्हारी ऊरमा

थारै नेह में बिगसती जग री आस

बरस बीतग्या कुण जांणै कित्ता

थारी बाछळ छिब सूं आंतरै

आभै ज्यूं तण्योड़ी थारी ओळूं

फगत बातां रैयगी बगत रै उणियारै,

आपै सूं परबारौ

कठै तौ सोधूं खुद रौ आभौ

पंगा हेठली जमीं,

कठैई नीं लाधै नचीती जीवारी!

स्रोत
  • पोथी : आगै अंधारौ ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : Prtham
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