अमर सदां वाणी रौ जोबन, जीवण समझ तमासा रै

बोझ घणो मन रौ भारी, तन तो तोळा मासा रै

बीती सूं परतीती राखै, आगत आवभगत बिसरै

मूढ़ कळपना रा तिरसंकु, सदां अधर बम में बिचरै

धरती पर आखड़बाळा, क्यूं बात करै ऊंची ऊंची

सपना री संगत सोवणियां, किण रै पंथ उजास करै

उळझी घणी अकल ही ज्यारी, सुळझै किण बिध भासा रै।

बोझ घणो मन रौ भारी तन तो तोळा मासा रै॥

आगळ ढ़की जकां रै मन रा, पाप पड़त खुलता देख्या

ओटी आग राख रै ओटै, बां रा तन बळता देख्या

जितरा कसणा काठा बांध्या, उतरी लाज ऊपर आई

बांधी पाळ जका धारा पै, बां रा तन बळता देख्या

मिनख सदां स्याणप में जीवै, पण कुचळादी सांसां रै

बोझ घणो मन रौ भारी तन तो तोळा मासा रै

सूरज इतरौ ना सिळगावै, पण तारा उतपात करै

रैण अमावस रै वै कुमनी पण पूनम री घात करै

रंग फूल रौ रमै रग रग, सौंरम राज करै मनड़ै

देव वासना रा भूखा पण मिनख भोग री आस करै

आसा अथक बधावै आगै, पकड़ै पांव निरासा रै

बोझ घणौ मन रौ भारी तन तो तोळा मासा रै।।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
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