ज्यादा छानो रहवो भी,
मन प्रीत म डाले झोळ।
सोच समझ क बोल भाईला,
मन की गांठ्यां खोल॥

अणबोल्या की अकड़ सदा,
शंका उपजावै छै।
रिश्तां की बाडां मं यो शक,
आग लगावे छै।
बण बोल्यां कै दबध्या जग मं,
काम बिगड़ जावै छै।
जे गुनाह जाणां भी न,
व्ह खातै मंड जावै छै॥
काईं सही,गलत काईं छै,
ले मन की ताखड़ी तोल
सोच समझ ....

देख छटा बातां की तो,
सब के मन भावे छै।
मंड न सक्या जे किस्सा,
जग व्ह भी पढ़ जावै छै।
सत-गुरू बातां कह-कह,
हर बात सिखावै छै।
सांच्या-झूठा मारग को जे,
भेद बतावे छै।
बातां चालै तो बाज उठै छै,
 न'रा घरां मं ढोल।
सोच समझ...

घुट ज्यावे बातां मन मं,
मन पीर बढ़ावे छै।
तनड़ो-मनडो हो रोगी,
कुम्हला ही जावे छै।
या नश्वर काया तो,
माटी मं मळ ज्यावेगी।
बोली जे बातां थने, जग मं रे ज्यावेगी॥
सोच्यां समझ्यां गैलो होसी,
बिन समझ्या रपटोळ।
अणबोल्यो... 

स्रोत
  • सिरजक : प्रीतिमा ‘पुलक’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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