घणां सबद सैंसार जाण जावै,

सबद जियां हीरो, सोनो, फौलाद,

सबद जिका चमकै, बळै अर जुपावै

घणो नईं पवित्तर, सबद ‘मैनत’ सूं!

त्रोग्लोदाइत्स असल मिनख हुया

जद, अेक पुन्न दिन, धरती

हळां सूं आपरा संवारी, अर जद

आपरी मैनत नैं पैलपोत थरपी।

छळकता प्याला अर पाक्योड़ी साखां

सैंग करी मैनत रा फळ खरा सारै;

सारी बात जीवण में जिकी नैचै राखां,

सारी बात जिका घर-घर सिणगारै।

लट्टू नुंवी बिजयंती रोसनी चसता,

मोटरां दोड़ती, रेलगाड़्यां,

बिन मारग उडती हवाईजाजां

सगळी है मैनत री परंपरावां!

ग्यान, कळा अर लेखण बिगसै—

सगळा मैनत तणा है सरूप!

हर कदम माथै, हर घड़ी बसै

पिरतक मैनत री मैमा दीसै।

जिका नित मैनत रा साचा पुजारा

जीवण रा असली इधकार उण रा

मजूरां बिना किसी जस री जुवारां,

बां सूं समदर री खाड़्यां खड़ी है।

ऊखा मुळकती जद भरपूर भावै,

सिंझ्या रा तारा सै फीका लखावै,

किसड़ो घणो, हरख आतम सुवावै,

मैनत रा बंदा जद कांधा उठावै!

थाकै परा, फेर सिंझ्या जद आवै,

हर जगो पूरो ईनाम पावै,

कमतर जे बींरो सादो लखावै,

करम रा खरा फळ बो कर्‌यां पावै।

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : वेलेरी बर्‌यूजोव ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै