घर, बिल, ठौड़ की कैय दो

जद अठा सूं नीसर व्हीर व्हैवै मारग

तद

सांचाणी वौ कीं नीं जाणतौ व्है

नंदी-नाळा

भाखर-धोरा

कादौ-कांटा

तावड़ौ छिंया

कीं नीं

वौ हळवां-हळवां

कनै कर नीसरतौ

पैली भाळै

पछै मुळकै

तगासतौ सांम्हला नै मनोमन

सुर रौ सरोधौ लेवै

पछै

खुदौखुद नै थावस बंधावतौ

सोचै थोड़ी ताळ

ता पछै फैसलो लेवै

के उणनै पाधरो चालती जावणौ है

कन टळणौ है

डावै जींवणै

उतार में गुड़कणौ है

कन सांम्ही घाटी चढणौ है

यूं मारग रै नीं व्है कोई असैधौ

वौ औळख जांणै

गाछ नै

बिरछ नै

काकर ने पाथर नै गांव नै ढांणी नै

रेत तगात नै

अर सगळां री सैंध व्है इण सूं

तोई खराखरी नीं केइजै

के मारग असंधी ठौड़ जावतौ

डर कोनीं

रात बिरात रा

केई-केई जायगा रौ इज व्है औड़ौ विसळेख

के वठै

डरपणी लागण लागै

आपौ आप सू

असल में हरअेक शै आपौ आप सूं डरै तौ है

डरणौ चइजै

आधी डरपणी तो असैधाई री व्है

अवसकर असैंधाई सूं उपजता अभरोसा री

भरोसौ व्हियां केड़ै तौ

हर कोई सूंप देवै आपरी काळजौ

पण मारग रै किसौ

भरोसौ दिराय

विणज थोड़ी करणौ व्है

करणौ व्है तोई

मारग कनै कद व्है ताकड़ी-तोला

नीं उणरै पाखती व्है छुरी कन कलम

मारग रेवै अेकदम खुल्लै खाली हाथ

इणीज सारू

केई दांण

असैंधा सांम्ही खुद असैंधाई

चलावतौ

निकल जावै पार

सैंधा-सैंधा विचाळै नीं व्है

किणी जात री छेती

पण सैंधा-असैंसा रै बिच्चै

हरमेस रैय जायां करें छिनीक सी गळी

अर स्रस्टि में

अंधारा रै धंसण री गळी इज है

अंधारौ पसर्‌यां

सैंधी चीजां व्है जाव असैंधी

अर आवगी दुनियां में भर जावै

अभरोसौ अभरोसौ

स्यात अैड़ीज किणी थित रै कांठै

डरतौ व्हैला मारग

(अर) मरती व्हैला मारग

स्रोत
  • पोथी : मारग ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : देवल प्रकासन, गोटीपा
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