जीवड़ा!

नीं डरणो

अमावस रै अंधारै सूं

पख बीत्यां आवैला

ऊजळा दिन

पून्यूं रो चांद तिरैलो जद

आभै रै ताल माथै

बरसैली चांदणी झमाझम

भीजैलो थूं

चांदणी रा इमरत सूं

पण जीवड़ा!

बत्ती नीं हुळसणो

फेरूं बावड़सी काळी रातां

चालती रैसी

रैसी

ईज लुकमींचणी

उजास-अंधारै री।

जीवड़ा!

समाई राखजै

जोईजै बाट

फेरूं-फेरूं

ऊजळा दिनां री।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : आशा शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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