रात कोय कारीगर आयौ

रंग दीनी है थनै,

कूंपळ कर दी केसरियाई,

सागै जाणै अपछर वाळै

होठां री वा ऊजळ लाली।

भरी छाब जद धरी सीस पर

लागै जाणै छाब मांयनै

भर लीना व्है बतख रा बचिया,

जिण री पांख्यां धवळ-धवळ अर

जिणरी नस है रंग नारंगी।

बीतण लागी रीत बसंती,

झड़िया वै पड़िया है धर पर,

लागै जाणै परभातां में

समदर तीरै

आई व्है वै थेट तळी सूं

कोडी लाख अर संख हजारूं,

पड़ी धरा पर लागै जाणै

आभै सूं आज हुई व्है

धवळ मणि री भल बरसातां।

कळि बणै जद फूल चकरियौ,

बिगसण लागै धवळ पांखड़ी,

लागै जाणै इण कुदरत री

सरमाती वा गीगलकी,

लागै जाणै बैठ घड़ी भर

थनै घड़ी व्है खुद पारवतां।

सुण सेफाळी!

सुण सेफाळी!

कठै लगावां थनै बता,

कद म्हारी है ठौड़ अेकसी,

हालै तौ तपतै मुरधरिया

लै हालां हूं सेफाळी,

हाथ छांवड़ी थनै बिठावां,

भर-भर पालर पांणी पावां,

नी लागण द्‌यां लू रा लपका,

नी खावण द्‌यां किणी जिनावर,

आठूं पौर रूखाळी ऊभौ

निरख-निरख नै हरख भरूंला,

सेफाळी, सुण सेफाळी

हालै तो हालां मुरधरियै।

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै